27.4.20

कुदरत ने मौका दिया है
आओ कुछ मन की करें

पसरे सन्नाटे को तोड़,
बात खुशी की, कुछ गम की करें ।

पानी दें पौधों में
खिलखिलाएं उनके साथ,
हवा बनकर छुएं उन्हें
चुभन कांटो की महसूस करें ।

उगते सूरज की लाली देखें
कोयल की कूक में झूमें,
पानी भरे परिंडों में
बातें नन्हें परिंदो से करें ।

अवसर मिला है
बच्चों के साथ का
खेलें कूदें, लौटे बचपन में,
लाड़ लड़ाएं उनके साथ
दिल खोल कर बातें करें ।

हाथ बटाएं पत्नी का, घर में,
सब्जी काटें, चटनी पीसें
उसके चेहरे पर
चुहाचुहाते पसीने को,
अपनी अंगुलियों के
पोर से साझा करें ।

आओ कुछ मन की करें ।

9.2.20

किस बात पर है गुस्सा, हमें बताया तो होता !
कितने ग़ुबार हैं दिल में, हमें बताया तो होता !

हम तो तैयार थे उनके दीदार को हर वक़्त,
मगर एक बार भी उसने, हमें बुलाया तो होता !

देख लेते हम भी दिल की तस्वीर झाँक कर,
मगर दिल में कभी उसने, हमें बसाया तो होता !

ज़रा सी बात को ही बना दिया दास्ताँ उसने,
ग़लती थी अगर कोई तो, हमें बताया तो होता !

बड़ा विचित्र है रोग ग़लत फहमियों का "हरि",
दवाई कौन सी है इसकी, हमें सुझाया तो होता !

2.2.20

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,
मगर ये बात हमारे ही दर्मियान रहे|
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई,
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|

31.12.19

उम्र की डोर से फिर
एक मोती झड़ रहा है....
तारीख़ों के जीने से
दिसम्बर फिर उतर रहा है..
कुछ चेहरे घटे,चंद यादें
जुड़ी गए वक़्त में....
उम्र का पंछी नित दूर और
दूर निकल रहा है..
गुनगुनी धूप और ठिठुरी
रातें जाड़ों की...
गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना
सा इक पर्दा गिर रहा है..
ज़ायका लिया नहीं और
फिसल गई ज़िन्दगी...
वक़्त है कि सब कुछ समेटे
बादल बन उड़ रहा है..
फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..
बूढ़ा दिसम्बर जवां जनवरी के कदमों मे बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को बीसवा साल लग रहा है
 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
-Hαяish αяσяα (Vαishηαv)
harisharorar@gmail.com

15.12.19

जिन्दगी क्या है ?

गुलज़ार ने कितनी खूबसूरती से बता दिया जिंदगी क्या है ?
-कभी तानों में कटेगी,
कभी तारीफों में;
ये जिंदगी है यारों,
पल पल घटेगी !!
-पाने को कुछ नहीं,
ले जाने को कुछ नहीं;
फिर भी क्यों चिंता करते हो,
इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी,
ये जिंदगी है यारों पल-पल घटेगी!
बार बार रफू करता रहता हूँ,
..जिन्दगी की जेब !!
कम्बखत फिर भी,
निकल जाते हैं...,
खुशियों के कुछ लम्हें !!
-ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही...
ख़्वाहिशों का है !!
ना तो किसी को गम चाहिए,
ना ही किसी को कम चाहिए !!
-खटखटाते रहिए दरवाजा...,
एक दूसरे के मन का;
मुलाकातें ना सही,
आहटें आती रहनी चाहिए !!
-उड़ जाएंगे एक दिन ...,
तस्वीर से रंगों की तरह !
हम वक्त की टहनी पर...,
बेठे हैं परिंदों की तरह !!
-बोली बता देती है,इंसान कैसा है!
बहस बता देती है, ज्ञान कैसा है!
घमण्ड बता देता है, कितना पैसा है।
संस्कार बता देते है, परिवार कैसा है !!
-ना राज़ है... "ज़िन्दगी",
ना नाराज़ है... "ज़िन्दगी",
बस जो है, वो आज है, ज़िन्दगी!
-जीवन की किताबों पर,
बेशक नया कवर चढ़ाइये;
पर...बिखरे पन्नों को,
पहले प्यार से चिपकाइये !!🌹

28.7.19

मुझे कहाँ मालूम था कि ...
सुख और उम्र की आपस में बनती नहीं...
कड़ी महेनत के बाद सुख को घर ले आया..
तो उम्र नाराज होकर चली गई....
आज दिल कर रहा था, बच्चों की तरह रूठ ही जाऊँ,
पर फिर सोचा, उम्र का तकाज़ा है, मनायेगा कौन।।
एक "उम्र" के बाद "उस उम्र" की बातें "उम्र भर" याद आती हैं..
पर "वह उम्र"  फिर "उम्र भर"  नहीं आती..ll
"छोटे थे।" हर बात 'भुल' जाया करते थे।
दुनिया कहती थी कि,
"याद" रखना सीखो..
"बड़े हुए" अब हर बात 'याद' रहती हैं। 
तो दुनिया कहती है कि,
"भूलना" सीखो….!!

3.4.19

मेरे भाई

शुक्रगुज़ार हूँ उस खुदा का
       जो मैंने ऐसी किस्मत पाई
भगवान सरीखे माता-पिता है
       और फ़रिश्ते जैसे मेरे भाई

23.9.18

ज़िन्दगी हमने कुछ खास कर लिया ,
तेरे ख़्वाबों को अपना लिबास कर लिया,
नज़र लग जाएगी ख़ुशी को मेरी,
ये सोच के खुद को उदास कर लिया,
डर सा मुझको लगा तन्हाई से,
आइना और थोड़ा पास कर लिया,
मेरे वदन को छू के जो हवाएं गुज़री,
तेरे होने का एहसास कर लिया,
मेरी चाहत थी तुझे मिल जाऊं ,
न सोच तूने मुझे तलाश कर लिया,


1.8.18

है सुना ये पूरी धरती तू चलाता है
मेरी भी सुन ले अरज मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
है सुना तू भटके मन को राह दिखाता है
मैं भी खोया हूं मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
मैं पूजा करूं या नमाजें पढूं
अरदासें करूं दिन रैन
ना तू मंदिर मिले, ना तू गिरजे मिले
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
जो भी रसमें हैं वो सारी मैं निभाता हूं
इन करोड़ों की तरह मैं सर झुकाता हूं
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
तेरे नाम कई, तेरे चेहरे कई
तूझे पाने की राहें कई
हर राह चला पर तू ना मिला
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
सोचे बिन समझे जतन करता ही जाता हूं
तेरी जिद सर आंखो पर रख के निभाता हूं
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
है सुना ये पूरी धरती तू चलाता है
मेरी भी सुन ले अरज मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू

6.5.18

इंसान जाने कहां खो गये हैं....!
जाने क्यूँ,
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नहीं होते।
जाने क्यूँ,
अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, 
दिल की बातें।
जाने क्यूँ,
अब चेहरे,
खुली किताब नहीं होते।

सुना है,
बिन कहे,
दिल की बात,
समझ लेते थे।
गले लगते ही,
दोस्त हालात,
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक था,
ना स्मार्ट फ़ोन,
ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्टी से ही,
दिलों के जज्बात,
समझ लेते थे।

सोचता हूँ,
हम कहाँ से कहाँ आगए,
व्यावहारिकता सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से,
समस्या का समाधान,
कहाँ पूछता है,
अब बेटा बाप से,
उलझनों का निदान,
कहाँ पूछता है,
बेटी नहीं पूछती,
माँ से गृहस्थी के सलीके,
अब कौन गुरु के,
चरणों में बैठकर,
ज्ञान की परिभाषा सीखता है।

परियों की बातें,
अब किसे भाती है,
अपनों की याद,
अब किसे रुलाती है,
अब कौन,
गरीब को सखा बताता है,
अब कहाँ,
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी में,
हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब,
इंसान जाने कहाँ खो गये हैं!

इंसान जाने कहां खो गये हैं....!