31.12.19

उम्र की डोर से फिर
एक मोती झड़ रहा है....
तारीख़ों के जीने से
दिसम्बर फिर उतर रहा है..
कुछ चेहरे घटे,चंद यादें
जुड़ी गए वक़्त में....
उम्र का पंछी नित दूर और
दूर निकल रहा है..
गुनगुनी धूप और ठिठुरी
रातें जाड़ों की...
गुज़रे लम्हों पर झीना-झीना
सा इक पर्दा गिर रहा है..
ज़ायका लिया नहीं और
फिसल गई ज़िन्दगी...
वक़्त है कि सब कुछ समेटे
बादल बन उड़ रहा है..
फिर एक दिसम्बर गुज़र रहा है..
बूढ़ा दिसम्बर जवां जनवरी के कदमों मे बिछ रहा है
लो इक्कीसवीं सदी को बीसवा साल लग रहा है
 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
-Hαяish αяσяα (Vαishηαv)
harisharorar@gmail.com

15.12.19

जिन्दगी क्या है ?

गुलज़ार ने कितनी खूबसूरती से बता दिया जिंदगी क्या है ?
-कभी तानों में कटेगी,
कभी तारीफों में;
ये जिंदगी है यारों,
पल पल घटेगी !!
-पाने को कुछ नहीं,
ले जाने को कुछ नहीं;
फिर भी क्यों चिंता करते हो,
इससे सिर्फ खूबसूरती घटेगी,
ये जिंदगी है यारों पल-पल घटेगी!
बार बार रफू करता रहता हूँ,
..जिन्दगी की जेब !!
कम्बखत फिर भी,
निकल जाते हैं...,
खुशियों के कुछ लम्हें !!
-ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही...
ख़्वाहिशों का है !!
ना तो किसी को गम चाहिए,
ना ही किसी को कम चाहिए !!
-खटखटाते रहिए दरवाजा...,
एक दूसरे के मन का;
मुलाकातें ना सही,
आहटें आती रहनी चाहिए !!
-उड़ जाएंगे एक दिन ...,
तस्वीर से रंगों की तरह !
हम वक्त की टहनी पर...,
बेठे हैं परिंदों की तरह !!
-बोली बता देती है,इंसान कैसा है!
बहस बता देती है, ज्ञान कैसा है!
घमण्ड बता देता है, कितना पैसा है।
संस्कार बता देते है, परिवार कैसा है !!
-ना राज़ है... "ज़िन्दगी",
ना नाराज़ है... "ज़िन्दगी",
बस जो है, वो आज है, ज़िन्दगी!
-जीवन की किताबों पर,
बेशक नया कवर चढ़ाइये;
पर...बिखरे पन्नों को,
पहले प्यार से चिपकाइये !!🌹

28.7.19

मुझे कहाँ मालूम था कि ...
सुख और उम्र की आपस में बनती नहीं...
कड़ी महेनत के बाद सुख को घर ले आया..
तो उम्र नाराज होकर चली गई....
आज दिल कर रहा था, बच्चों की तरह रूठ ही जाऊँ,
पर फिर सोचा, उम्र का तकाज़ा है, मनायेगा कौन।।
एक "उम्र" के बाद "उस उम्र" की बातें "उम्र भर" याद आती हैं..
पर "वह उम्र"  फिर "उम्र भर"  नहीं आती..ll
"छोटे थे।" हर बात 'भुल' जाया करते थे।
दुनिया कहती थी कि,
"याद" रखना सीखो..
"बड़े हुए" अब हर बात 'याद' रहती हैं। 
तो दुनिया कहती है कि,
"भूलना" सीखो….!!

3.4.19

मेरे भाई

शुक्रगुज़ार हूँ उस खुदा का
       जो मैंने ऐसी किस्मत पाई
भगवान सरीखे माता-पिता है
       और फ़रिश्ते जैसे मेरे भाई

23.9.18

ज़िन्दगी हमने कुछ खास कर लिया ,
तेरे ख़्वाबों को अपना लिबास कर लिया,
नज़र लग जाएगी ख़ुशी को मेरी,
ये सोच के खुद को उदास कर लिया,
डर सा मुझको लगा तन्हाई से,
आइना और थोड़ा पास कर लिया,
मेरे वदन को छू के जो हवाएं गुज़री,
तेरे होने का एहसास कर लिया,
मेरी चाहत थी तुझे मिल जाऊं ,
न सोच तूने मुझे तलाश कर लिया,


1.8.18

है सुना ये पूरी धरती तू चलाता है
मेरी भी सुन ले अरज मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
है सुना तू भटके मन को राह दिखाता है
मैं भी खोया हूं मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
मैं पूजा करूं या नमाजें पढूं
अरदासें करूं दिन रैन
ना तू मंदिर मिले, ना तू गिरजे मिले
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
तूझे ढूंढे थके मेरे नैन
जो भी रसमें हैं वो सारी मैं निभाता हूं
इन करोड़ों की तरह मैं सर झुकाता हूं
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
तेरे नाम कई, तेरे चेहरे कई
तूझे पाने की राहें कई
हर राह चला पर तू ना मिला
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
तू क्या चाहे मैं समझा नहीं
सोचे बिन समझे जतन करता ही जाता हूं
तेरी जिद सर आंखो पर रख के निभाता हूं
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
है सुना ये पूरी धरती तू चलाता है
मेरी भी सुन ले अरज मुझे घर बुलाता है
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू
भगवान है कहां रे तू हे खुदा है कहां रे तू

6.5.18

इंसान जाने कहां खो गये हैं....!
जाने क्यूँ,
अब शर्म से,
चेहरे गुलाब नहीं होते।
जाने क्यूँ,
अब मस्त मौला मिजाज नहीं होते।

पहले बता दिया करते थे, 
दिल की बातें।
जाने क्यूँ,
अब चेहरे,
खुली किताब नहीं होते।

सुना है,
बिन कहे,
दिल की बात,
समझ लेते थे।
गले लगते ही,
दोस्त हालात,
समझ लेते थे।

तब ना फेस बुक था,
ना स्मार्ट फ़ोन,
ना ट्विटर अकाउंट,
एक चिट्टी से ही,
दिलों के जज्बात,
समझ लेते थे।

सोचता हूँ,
हम कहाँ से कहाँ आगए,
व्यावहारिकता सोचते सोचते,
भावनाओं को खा गये।

अब भाई भाई से,
समस्या का समाधान,
कहाँ पूछता है,
अब बेटा बाप से,
उलझनों का निदान,
कहाँ पूछता है,
बेटी नहीं पूछती,
माँ से गृहस्थी के सलीके,
अब कौन गुरु के,
चरणों में बैठकर,
ज्ञान की परिभाषा सीखता है।

परियों की बातें,
अब किसे भाती है,
अपनों की याद,
अब किसे रुलाती है,
अब कौन,
गरीब को सखा बताता है,
अब कहाँ,
कृष्ण सुदामा को गले लगाता है

जिन्दगी में,
हम केवल व्यावहारिक हो गये हैं,
मशीन बन गए हैं हम सब,
इंसान जाने कहाँ खो गये हैं!

इंसान जाने कहां खो गये हैं....!

17.3.18

एक अच्छी कविता नही बन पाई!!


कई शब्द हैं और कुछ भावनाएं,
सोचता हूं एक कविता बन जाये!

कुछ कठिन शब्द हैं, कुछ सरल,
कुछ वाक्य गड्डमगड्ड हैं तो कुछ विरल!

अक्षर सारे आ गये, स्वर भी सब यहीं हैं,
मात्राएं सब ये रहीं, चिन्ह भी यहीं कहीं हैं!

कहीं अल्प विराम”  ( , ) मुंह छिपाये पडा है,
तो पास मे पूर्ण विराम”  ( । ) खडा है!

चन्द्र- बिन्दु”  ( ँ ) चिल्ला रहा- बताओ कहाँ लग जांउं?
माँ के साथ  लगाओगी? या  ’चाँदपर चढ जाउं?

उधर देखती हूं, “बिन्दी”  ( . ) इठला रही,
डैश” ( – ) भी कहीं लग जाने को बहला रही!

अवतरण चिन्ह” ( ” ” ) कहे मुझे कहाँ लगाओगे?
कोष्ठक”  (  ) भी पूछ रहा- मुझमे किसे बिठाओगे?

प्रश्न वाचक” ( ? ) चिन्ह कहे- बताओ क्या पूछना है?
या कि तुम्हे बस विस्मय” ( ! ) मे ही रहना है!

सब कुछ है यहां, पर संयोजन नही हो पाता,
वाक्य रचना ठीक है, पर भाव कहीं खो जाता!

शब्द अलट- पलट किये मात्राएं लगाईं!
फ़िर भी एक अच्छी कविता नही बन पाई!!


18.2.18

दर्द बयां तुझसे ऐ जिंदगी

किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
उसको पाना मेरे नसीब में नहीं है तो भी बतला दे

यूं सुनहरी मंजिल दिखाकर मुझको

क्यूं इन कांटों भरी राहों में भटकाती है तू जिंदगी !
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !

हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
तू है ही ऐसी या मुझ पर बेरहम है

मुझे करना क्या है क्यूं नही मुझे बताती है तू जिंदगी

रात दिन एक कर दूंगा तेरे लिए

बस यूं खामोश रहकर, क्यूं मुझे सताती है तू जिंदगी !
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
मैं तेरा हूं तू मेरी है, तेरे बिना मैं कुछ नहीं
ना मेरे बिना तू कुछ है
अजीब कश्मकश है तेरी खामोशी की भी
तू संवरना चाहती है मेरे कर्मों पर
रुक ना जाए पंख कहीं आसमान में जाकर
शायद इसीलिए सौ बार गिराकर कदमों पे मुझको
फिर से चलना सिखाती है तू जिंदगी
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !

14.2.18

सिर्फ तुम

यूं ही नहीं मिलता कोई अपना
इन गैरों की भीड़ में
बहुत मिन्नतों के बाद तू मिला है
इस दिल ए जागीर में
***
तेरी मुस्कुराहट से महक उठता है
हर कोना मेरे दिल का
तेरी ख़ामोशी से दहल उठता है
हर कतरा मेरे दिल का
***
तेरे साथ का असर
यूं हुआ है मुझमें
तू ही तू हर तरफ है
मैं नहीं अब खुद में
***
ये जिंदगी तेरे बिना अब
नामुमकिन सी लगती है
चाह है तेरी जिसके बगैर
ये सांसे अधूरी सी लगती है
***
एक सुबह फिर हो और
तुझे पाने की आस फिर जगी हो
काश ये इंतेजार खत्म हो और
मेरी हर तमन्ना पूरी हो |
               हरीश अरोड़ा 'वैष्णव' 
               Harish Arora (Vαishηαv)