कई शब्द हैं और कुछ भावनाएं,
सोचता हूं एक कविता बन जाये!
कुछ कठिन शब्द हैं, कुछ सरल,
कुछ वाक्य गड्डमगड्ड हैं तो कुछ विरल!
अक्षर सारे आ गये, स्वर भी सब यहीं हैं,
मात्राएं सब ये रहीं, चिन्ह भी यहीं कहीं हैं!
कहीं “अल्प विराम” ( , ) मुंह छिपाये पडा है,
तो पास मे “पूर्ण विराम” ( । ) खडा है!
“चन्द्र- बिन्दु” ( ँ ) चिल्ला रहा- बताओ कहाँ लग जांउं?
’माँ ’ के साथ लगाओगी? या ’चाँद’ पर चढ जाउं?
उधर देखती हूं, “बिन्दी” ( . ) इठला रही,
“डैश” ( – ) भी कहीं लग जाने को बहला रही!
” अवतरण चिन्ह” ( ” ” ) कहे मुझे कहाँ लगाओगे?
“कोष्ठक” ( ) भी पूछ रहा- मुझमे किसे बिठाओगे?
“प्रश्न वाचक” ( ? ) चिन्ह कहे- बताओ क्या पूछना है?
या कि तुम्हे बस ” विस्मय” ( ! ) मे ही रहना है!
सब कुछ है यहां, पर संयोजन नही हो पाता,
वाक्य रचना ठीक है, पर भाव कहीं खो जाता!
शब्द अलट- पलट किये मात्राएं लगाईं!
फ़िर भी एक अच्छी कविता नही बन पाई!!