25.9.22

यादों का हिसाब रख रहा हूँ...

यादों का हिसाब रख रहा हूँ

सीने में अज़ाब रख रहा हूँ...

तुम कुछ कहे जाओ क्या कहूँ मैं

बस दिल में जवाब रख रहा हूँ

दामन में किए हैं जमकर गिर्दाब

जेबों में हबाब रख रहा हूँ...

आएगा वो नख़वती सो मैं भी

कमरे को ख़राब रख रहा हूँ

तुम पर मैं सहीफ़ा-हा-ए-कोहना

इक ताज़ा किताब रख रहा हूँ...



14.9.22

कोरोना या ईश्वर का कहर

कोरोना या ईश्वर का कहर
तू नाराज तो है अपने इंसान से भगवान.. 
नहीं तो मंदिरों के दरवाजे बंद ना करता.. 
सज़ा दे रहा है कुदरत से खिलवाड़ की.. 
नहीं तो गुरुद्वारों से लंगर कभी ना उठता.. 
आज उन बारिश की बूंदों से संदेश मिला.. 
रोता तो तू भी है जब इंसान आंसू बहाता.. 
माफ़ करदे अपने बच्चों के हर गुनाह.. 
सब कहते हैं, तेरी मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नहीं हिलता!!! 



कहां चले... ?

वक्त के दरमियां हम कुछ इस तरह चले

कि अब ज़िन्दगी ही पूछती बता कहां चले

बदल रही हर एक लम्हे-लम्हे मेरी ज़िंदगी

इस किताब-ए-ज़िन्दगी को लेकर कहां चलें

कहां करूं मैं सजदा कहां धुनुं मैं सिर

कोई तो होगा रहनुमा जिसकी यहां चले

कुछ इस तरह करो की लौटना पड़े नहीं

न फर्क है कि साथ गम-ए-तन्हाई चली चले

कहते हैं एक नाटक होती है ज़िन्दगी

हरी'अदा तो कर शायद 'हरी' चले