9.2.20

किस बात पर है गुस्सा, हमें बताया तो होता !
कितने ग़ुबार हैं दिल में, हमें बताया तो होता !

हम तो तैयार थे उनके दीदार को हर वक़्त,
मगर एक बार भी उसने, हमें बुलाया तो होता !

देख लेते हम भी दिल की तस्वीर झाँक कर,
मगर दिल में कभी उसने, हमें बसाया तो होता !

ज़रा सी बात को ही बना दिया दास्ताँ उसने,
ग़लती थी अगर कोई तो, हमें बताया तो होता !

बड़ा विचित्र है रोग ग़लत फहमियों का "हरि",
दवाई कौन सी है इसकी, हमें सुझाया तो होता !

2.2.20

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|

सफ़र की हद है वहाँ तक कि कुछ निशान रहे|
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे|
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल,
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे|
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है,
तुम उस को दोस्त समझते हो फिर भी ध्यान रहे|
मुझे ज़मीं की गहराईयों ने दाब लिया,
मैं चाहता था मेरे सर पे आसमान रहे|
अब अपने बीच मरासिम नहीं अदावत है,
मगर ये बात हमारे ही दर्मियान रहे|
मगर सितारों की फसलें उगा सका न कोई,
मेरी ज़मीन पे कितने ही आसमान रहे|
वो एक सवाल है फिर उस का सामना होगा,
दुआ करो कि सलामत मेरी ज़बान रहे|