17.3.18

एक अच्छी कविता नही बन पाई!!


कई शब्द हैं और कुछ भावनाएं,
सोचता हूं एक कविता बन जाये!

कुछ कठिन शब्द हैं, कुछ सरल,
कुछ वाक्य गड्डमगड्ड हैं तो कुछ विरल!

अक्षर सारे आ गये, स्वर भी सब यहीं हैं,
मात्राएं सब ये रहीं, चिन्ह भी यहीं कहीं हैं!

कहीं अल्प विराम”  ( , ) मुंह छिपाये पडा है,
तो पास मे पूर्ण विराम”  ( । ) खडा है!

चन्द्र- बिन्दु”  ( ँ ) चिल्ला रहा- बताओ कहाँ लग जांउं?
माँ के साथ  लगाओगी? या  ’चाँदपर चढ जाउं?

उधर देखती हूं, “बिन्दी”  ( . ) इठला रही,
डैश” ( – ) भी कहीं लग जाने को बहला रही!

अवतरण चिन्ह” ( ” ” ) कहे मुझे कहाँ लगाओगे?
कोष्ठक”  (  ) भी पूछ रहा- मुझमे किसे बिठाओगे?

प्रश्न वाचक” ( ? ) चिन्ह कहे- बताओ क्या पूछना है?
या कि तुम्हे बस विस्मय” ( ! ) मे ही रहना है!

सब कुछ है यहां, पर संयोजन नही हो पाता,
वाक्य रचना ठीक है, पर भाव कहीं खो जाता!

शब्द अलट- पलट किये मात्राएं लगाईं!
फ़िर भी एक अच्छी कविता नही बन पाई!!