18.2.18

दर्द बयां तुझसे ऐ जिंदगी

किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
उसको पाना मेरे नसीब में नहीं है तो भी बतला दे

यूं सुनहरी मंजिल दिखाकर मुझको

क्यूं इन कांटों भरी राहों में भटकाती है तू जिंदगी !
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !

हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
तू है ही ऐसी या मुझ पर बेरहम है

मुझे करना क्या है क्यूं नही मुझे बताती है तू जिंदगी

रात दिन एक कर दूंगा तेरे लिए

बस यूं खामोश रहकर, क्यूं मुझे सताती है तू जिंदगी !
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !
मैं तेरा हूं तू मेरी है, तेरे बिना मैं कुछ नहीं
ना मेरे बिना तू कुछ है
अजीब कश्मकश है तेरी खामोशी की भी
तू संवरना चाहती है मेरे कर्मों पर
रुक ना जाए पंख कहीं आसमान में जाकर
शायद इसीलिए सौ बार गिराकर कदमों पे मुझको
फिर से चलना सिखाती है तू जिंदगी
किताबों से ज्यादा मुझे तू सिखाती है जिंदगी !
हर कदम पे कुछ नया तू बताती है जिंदगी !

14.2.18

सिर्फ तुम

यूं ही नहीं मिलता कोई अपना
इन गैरों की भीड़ में
बहुत मिन्नतों के बाद तू मिला है
इस दिल ए जागीर में
***
तेरी मुस्कुराहट से महक उठता है
हर कोना मेरे दिल का
तेरी ख़ामोशी से दहल उठता है
हर कतरा मेरे दिल का
***
तेरे साथ का असर
यूं हुआ है मुझमें
तू ही तू हर तरफ है
मैं नहीं अब खुद में
***
ये जिंदगी तेरे बिना अब
नामुमकिन सी लगती है
चाह है तेरी जिसके बगैर
ये सांसे अधूरी सी लगती है
***
एक सुबह फिर हो और
तुझे पाने की आस फिर जगी हो
काश ये इंतेजार खत्म हो और
मेरी हर तमन्ना पूरी हो |
               हरीश अरोड़ा 'वैष्णव' 
               Harish Arora (Vαishηαv)