7.1.17

उड़ चला था उन हवाओं के साथ,
खुद जिनका नही था ठिकाना
ले चलीं कुछ ऐसी जगह,
जहां न जमीं थी, ना आसमां
एक पल तो डर गया था सपनों से
यकीन तब हो गया
जब थाम कर हाथ मेरा कुछ ऐसा
कहा 'चलो थोड़ी जी लेते है ।'
चल पड़ा उन 
हवाओं के संग-संग
राह में थोड़ी आँख क्या लगी और वो
सिलसिला वही खत्म-सा हो गया
पकड़ तो नहीं सका आज भी, पर 
कर लेता हूँ महसूस कभी-कभी
उड़ चला था उन हवाओं के साथ,
खुद जिनका नही था ठिकाना
छोड़ चली कुछ ऐसी जगह, 
जहाँ न बातें थी न खामोशी
बस कुछ धुंधली-सी
यादें थी और मैं...
Harish Arora Vaishnav