25.12.16

harish.arora.92123
लफ्जों से अपने आज कल नश्तर बनाता हूं
मैं परबतों को काट कर कंकर बनाता हूं
       मायूसियों को छोंक कर सालन के साथ में
       कड़वाहटों को घोल कर शक्कर बनाता हूं
आपनी इंसानियत को जिन्दा रखने के वास्ते
मासूमियत हो के तीखे तेवर बनाता हूं
       जैसे कुम्हार चाक पर बरतन बनाता है
       वैसे ही जिन्दगी के अरमान बनाता हूं
मोती जैसे लफ्जों को चमका के ए 'हरी'
अल्फाज जोड़ जोड़ कर जेवर बनाता हूं ।