26.5.16

होंसले को आजमाना चाहता हूँ ,
     इक नया जोखिम उठाना चाहता हूँ ।
कामयाबी देखना मिलकर रहेगी ,
     मुश्किलों को बस हराना चाहता हूँ ।
वह गजल लिखकर रहूंगा जिंदगी की ,
     जो लबों पर गुनगुनाना चाहता हूँ ।
अब उदासी को कहीं जाना पडेगा ,
     मैं खुशी से घर सजाना चाहता हूँ ।
मैं बढूंगा जोश लेकर हर कदम ही ,
     रास्तों को मैं थकाना चाहता हूँ ।
साथ मेरा दे न दे कोई भले ही ,
     हमसफ़र खुद को बनाना चाहता हूँ ।
मुश्किलों का सामना हंसकर करूंगा ,
     मंजिलों का सर झुकाना चाहता हूँ ।

14.5.16

 " वक़्त  नहीं " 

हर  ख़ुशी  है  लोंगों  के दामन  में,
पर  एक  हंसी  के  लिये वक़्त  नहीं.

दिन रात  दौड़ती  दुनिया  में, 
ज़िन्दगी  के  लिये ही  वक़्त नहीं.

सारे  रिश्तों को  तो  हम मार चुके,
अब  उन्हें  दफ़नाने  का  भी वक़्त नहीं .. 

सारे  नाम  मोबाइल  में  हैं , 
पर  दोस्ती  के  लिये  वक़्त  नहीं .

गैरों  की  क्या  बात करें , 
जब  अपनों  के  लिये  ही वक़्त नहीं.

आखों  में  है  नींद भरी , 
पर  सोने  का वक़्त  नहीं . 

दिल  है  ग़मो  से  भरा  हुआ , 
पर  रोने का  भी  वक़्त  नहीं . 

पैसों  की दौड़  में  ऐसे  दौड़े, की 
थकने  का  भी वक़्त  नहीं . 

पराये एहसानों  की क्या  कद्र  करें , 
जब अपने  सपनों  के  लिये  ही वक़्त नहीं  

तू  ही  बता  ऐ  ज़िन्दगी , 
इस  ज़िन्दगी  का  क्या होगा, 
की हर  पल  मरने  वालों  को , 
जीने  के  लिये भी  वक़्त  नहीं ....
Harish Vaishnav
harisharorar@gmail.com
https://harisharorar.blogspot.in/?m=0

8.5.16

कभी समंदर किनारे नर्म, ठंडी रेत पर बैठे हुए डूबते हुए सूरज को निहारना ....... 
और फ़िर यूँ लगे कि मन भी उसी के साथ हो लिया हो। 
इस दुनिया की उथल-पुथल से दूर, बहुत दूर और पा लेना कुछ सुकून भरे लम्हें ....... 
किसी पहाड़ी की चोटी पर बने मन्दिर की सीढियां पैदल चढ़कर जाना और दर्शनोपरांत उन्हीं सीढ़ियों पर कुछ देर बैठकर वादी की खूबसूरती को आंखों से पी जाना।
बयाँ करते-करते थक जाना मगर चुप होने का नाम न लेना। 
मगर इन सबके बीच जब तन्हाई आकर डस जाए तो कुछ दर्द के साए उमड़ने लगते हैं और ना चाहते हुए भी ख़्वाबों-ख्यालों का ताना-बाना कुछ इस तरह सामने आता है...

ऐ हवा कभी तो मेरे दर से गुजर,
देख कितनी महकी यादें संभाली हैं मैंने,
संग तेरे कर जाने को,
हवा हो जाने को।

ऐ बहार कभी तो इधर भी रुख कर,
देख कई गुलाब मैंने भी रखे थे कभी,
किताबों में मुरझाने को,
पत्ता-पत्ता हो जाने को।

ऐ चाँद थोड़ी चाँदनी की इनायत कर,
कई छाले मैंने भी सजा कर रखे हैं,
बेजान बदन तड़पाने को,
रूह का दर्द छिपाने को।

ऐ चिराग घर में कुछ तो रोशनी कर,
कई बार आशियाँ जलाया है मैंने,
उजाला पास बुलाने को,
अँधेरा दूर भगाने को।

ऐ शाम ना जा, ज़रा कुछ देर ठहर,
अक्सर रात को पाया है मैंने,
तन्हाई मेरी मिटाने को,
दोस्त कोई कहलाने को।
Shivpura 306104

1.5.16

उलझनों और कश्मकश में..
उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ..
ए जिंदगी! तेरी हर चाल के लिए..
मैं दो चाल लिए बैठा हूँ |

लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख-मिचोली का ...
मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ l

चल मान लिया... दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक...
गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ l

ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक ...
मुझे क्या फ़िक्र... मैं कश्तियां और दोस्त... बेमिसाल लिए बैठा हूँ...।

Harish Arora