30.4.16

"मंजिल की ओर"
खुशी को मान खुशी और गम को गम करके ,
जरा सी बात को मत तूल दे अहम करके |
कद और बढता है सर को जरा खम करके ,
न हो तो देख कभी अपने मैं को हम करके |
वही गवाह था इन हादिसात का तन्हा ,
जुबान छीन ली उसकी भी मोहतरम करके |
हमी न पढ़ सके तहरीर बहते पानी पर ,
नहीं तो मौजें गई कितनी कुछ रकम करके |
उस एक सच से मुसीबत में जान थी कितनी ,
मजे में कट भी गई जिंदगी भरम करके |
अजब नहीं कि नजारों को कल तरस जाएं ,
न हो तो आप भी रख लें कोई सनम करके |
मिजाज अपना परिंदा सिफत रहा लेकिन ,
मिली हैं मंजिले हमको कदम-कदम करके |
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29.4.16

खुशियां कम और अरमान बहुत हैं..
जिसे भी देखिए यहां हैरान बहुत हैं...
करीब से देखा तो है रेत का घर..
दूर से मगर उनकी शान बहुत हैं...
कहते हैं सच का कोई सानी नहीं..
आज तो झूठ की आन-बान बहुत हैं...
मुश्किल से मिलता है शहर में आदमी..
यूं तो कहने को इन्सान बहुत हैं...
तुम शौक से चलो राहें-वफा लेकिन..
जरा संभल के चलना तूफान बहुत हैं...
वक्त पे न पहचाने कोई ये अलग बात है..
वैसे तो शहर में अपनी पहचान बहुत हैं...।
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अच्छे – बुरे की जिसे पहचान हो जाए 
कसम से वो आदमी इंसान हो जाए
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27.4.16

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खवाहिश  नहीं  मुझे  मशहुर  होने  की।
आप  मुझे  पहचानते  हो  बस  इतना  ही  काफी  है।
अच्छे  ने  अच्छा  और  बुरे  ने  बुरा  जाना  मुझे।
क्योंकि  जिसकी  जीतनी  जरुरत  थी  उसने  उतना  ही  पहचाना  मुझे।
ज़िन्दगी  का  फ़लसफ़ा  भी   कितना  अजीब  है, 
शामें  कटती  नहीं,  और  साल  गुज़रते  चले  जा  रहे  हैं....!!
एक  अजीब  सी  दौड़  है  ये  ज़िन्दगी, 
जीत  जाओ  तो  कई  अपने  पीछे  छूट  जाते  हैं,
और  हार  जाओ  तो  अपने  ही  पीछे  छोड़  जाते  हैं।
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26.4.16

जिंदगी! मुझसे तेरा अब कोई एहसान नहीं
खिसक रही है जमीं, सर पे आसमान नहीं। 

कैद हुई है खुशबू, जंजीर गुल के पांवों में
कैसा चमन है ये, जिसका कोई बांगबान नहीं। 

कैसे समझूं मैं उन्हें जिंदा, जिन लोगों की 
रगों में अब खून नहीं, जुबां में भी जान नहीं। 

अजब है शिकारी ये, निकला जो जगल में
बंदूक जिसके हाथ नहीं, शिकार को मचान नहीं। 

ये चमन में ही पड़े रहते तो अच्छा था
कहां रखें गुलाबों को घर में गुलदान नहीं। 

कैसा घर है ये, हमेशा जो बंद रहता है
खिड़कियां भी बंद, मगर बंद रौशनदान नहीं। 
    
तरसते हैं जिंदगी के हम जतन के वास्ते
एक रोटी के लिए और इक कफन के वास्ते। 

भूख से वो मर रहा है, है नग्न उसकी जिंदगी
इक लंगोटी तो उसे दो, उसके तन के वास्ते। 

गिजा है बादाम उनकी, और अपनी मूंगफली
हमको कांफी चार ही छिलके जेहन के वास्ते। 

महाजन ने जोंक बन कर, चूस ली उसकी उमर
बच गया है उसका कुनबा ही रेहन के वास्ते। 

फौज के जनरल, कमांडर खुद यहां बिकने लगे 
क्या करेंगे देशद्रोही इस वतन के वास्ते। 
    
तमाम दिन की थकावट है सो लिया जाए
वादिए-ख्वाब में कुछ देर खो लिया जाए। 

पौध बारूद की उगने लगी है आज यहां 
बीज एक अम्न का धरती में बो लिया जाए।

शबे-फुरंकत है, तेरी याद है, तन्हाई है
अपने कमरे में ही चुपचाप रो लिया जाए। 

दर्द का बोझ उठाएगी कलम ये कब तक 
भार ये अपनी ही पलकों पे ढो लिया जाए। 

तीरगी क्या तो हटाएगा तेल का ये दिया
गजल का इक चरांग दिल में जो लिया जाए। 

हुक्म हुआ मालिक तेरा, ये घर खाली कर जाना है 
बांध बोरिया-बिस्तर अपना तेरे दर पर आना है। 

जो था बादशाह, भूखा-प्यासा सोता फुटपाथों पर 
रहने चलने का उसका अंदाज मगर शाहना है। 

मुझको, खुदको, तुझको, सबको अब ये सच बतलाना है
प्यार हवस का दश्त नहीं है प्यारे! इक बुतंखाना है। 

बुरे वक्त क़ी इस किताब को रख तू दुनिया के आगे
जान जाएगा कौन है अपना, कौन यहां बेगाना है। 

सिकुड़ गई है भूख से जिनकी आंतें, उनको क्या मतलब
कौन राह पे दैरो-हरम है कौन राह मयंखाना है।
Harish Arora

25.4.16

हरिवंशराय बच्चन ने अपनी कविताओ में कुछ बहुत ही सुंदर लाइनें लिखी हैं.

हारना तब आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई "अपनों" से हो ! 
और जीतना तब आवश्यक हो जाता है
जब लड़ाई "अपने आप " से हो ! !
मंजिले मिले , ये तो मुकद्दर की बात है
हम कोशिश ही न करे ये तो गलत बात है
किसी ने बर्फ से पूछा कि,
आप इतने ठंडे  क्यूं हो ?
बर्फ ने बडा अच्छा जवाब दिया :-
" मेरा अतीत भी पानी;
मेरा भविष्य भी पानी..."
फिर गरमी किस बात पे रखूं । 
मैं रूठा, तुम भी रूठ गए फिर मनाएगा कौन ? 
आज दरार है, कल खाई होगी फिर भरेगा कौन ?
मैं चुप, तुम भी चुप इस चुप्पी को फिर तोडेगा कौन ? 
बात छोटी सी लगा लोगे दिल से, तो रिश्ता फिर निभाएगा कौन ? 
दुखी मैं भी और तुम भी बिछड़कर, सोचो हाथ फिर बढ़ाएगा कौन ? 
न मैं राजी, न तुम राजी, फिर माफ़ करने का बड़प्पन दिखाएगा कौन ? 
डूब जाएगा यादों में दिल कभी, तो फिर धैर्य बंधायेगा कौन ? 
एक अहम् मेरे, एक तेरे भीतर भी, इस अहम् को फिर हराएगा कौन ? 
ज़िंदगी किसको मिली है सदा के लिए ? फिर इन लम्हों में अकेला रह जाएगा कौन ? 
मूंद ली दोनों में से गर किसी दिन एक ने आँखें.... तो कल इस बात पर फिर पछतायेगा कौन?
harisharorar@gmail.com